प्रदेश में रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव से बचने किसान अब अपनाने लगे जैविक खेती

रायपुर। रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए प्रदेश के किसान अब जैविक खेती की ओर रूख करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में बने गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट खाद का सहजता से उत्पादन किया जा रहा है। आसानी से उपलब्ध होने के कारण जैविक खेती को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका है।  बिलासपुर के कोटा ब्लॉक के ग्राम सिलदहा, भैंसाझार और बछालीखुर्द में 1250 एकड़ में हो रही जैविक खेती की सफलता आज किसानों के लिए अनुकरणीय बन गई है। शासन की परम्परागत कृषि विकास योजना से भी जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। इसके तहत जैविक खेती के लिए कृषकों को प्रति हेक्टेयर 10-12 हजार रुपए का अनुदान भी दिया जाता है।

बताया गया कि परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत बिलासपुर जिले में कोटा विकासखण्ड के ग्राम सिलदहा, भैंसाझार और बछालीखुर्द में 1250 एकड़ रकबे में जैविक खेती हो रही है। इस रकबे में एच.एम.टी. धान की जैविक खेती की जा रही है, जिससे 13 हजार क्विंटल जैविक धान के उत्पादन की उम्मीद हैं। किसानों के जैविक उत्पाद की ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन की व्यवस्था भी की जाएगी। इन गांवों के किसान जैविक हरी खाद जैसे-ढेंचा की बोनी एवं मथाई कर और जैविक उर्वरकों और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग जैविक धान के उत्पादन के लिए कर रहे हैं। परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक उत्पाद को प्रमाणित कर कृषकों को जैविक प्रमाण पत्र भी प्रदान किया जा रहा है, ताकि उनके कृषि उत्पाद को बेहतर बाजार मूल्य मिल सके।

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