जन्मदिन विशेष : जानिए बिलासपुर के मस्तूरी गांव का एक बेटा,आखिर कैसे बना छत्तीसगढ़ महतारी का रतन बेटा…
रायपुर। “लक्ष्मण मस्तुरिया”यह नाम सुनते ही सभी छत्तीसगढ़िया के आंखों के सामने एक मीडियम कद काठी वाले सांवले रंग से शोभायमान नेत्रों में एक विशिष्ट भुइंया प्रेम लिए और मुख से “मैं छत्तीसगढ़ियां अव ग” गाते हुए एक व्यक्ति की विशाल छवी हमारे नेत्रों के सामने तैरने लगती है।और जिन्हें सभी छत्तीसगढ़ के लोग छत्तीसगढ़ महतारी के “दुलरवा बेटा” यानि माटी पुत्र लक्ष्मण मस्तुरिया के नाम से जानते हैं।
आज का दिन ढाई करोड़ छत्तीसगढ़ के लोंगो के लिए बहुत खास है, क्योंकि आज ही के दिन 7 जून सन् 1949 को लक्ष्मण मस्तुरिया जी का जन्म बिलासपुर के मस्तुरी गांव में हुआ था।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही सम्पन्न की उनका मन पढ़ाई से ज्यादा गाने बजाने और छत्तीसगढ़ महतारी को करीब से देखने में ज्यादा रमता थ,यही कारण था कि उनकी हर रचना में छत्तीसगढ़ माटी की महक दूर से ही महकने लगती है। चाहे वो लोगो को एकता के सूत्र में बांधने वाली रचना “मोर संग चलव रे” हो या फिर एक सीधवा और ठेठ छत्तीसगढ़िया की विशेषता प्रकट करने वाली रचना “भारत माता के रत्न बेटा”हो या फिर अपने मयारू के प्रति प्रेम प्रगट करने के लिए गाई गई “धनी बिना जग लागे सुना” और “मंगनी म मांगे मया नई मिलय” वाली रचना ही क्यों न हो मस्तुरिया जी की ठेठ बोली और माटी मया उनकी हर रचना में देखने को मिल जाती है।
कदाचित छत्तीसगढ़ महतारी का यह रतन बेटा आज तक किसी रस में बंध कर नहीं रहा,वह तो सिर्फ छत्तीसगढ़,छत्तीसगढ़ी,और छत्तीसगढ़िया रस से सरोबार रहा यही कारण है, कि उनकी छोटी सी छोटी और बड़ी सी बड़ी सभी रचनाओं में आपको माटी प्रेम, छत्तीसगढ़ी लोक कला के प्रति उनका अगाध श्रद्धा और छत्तीसगढ़ी अंचल की हर परम्परा देखने को मिल जाएगी जिसका उदाहरण आप “तरी हरी नाहना” और “पता देजा रे पता लेजा रे” जैसी रचनाओं में देख सकते हैं।
उनकी लोकसंगीत और लोककला के प्रति लगाव का ही परिणाम रहा कि वे मात्र 22 साल के उम्र में अविभाजित मध्यप्रदेश के सबसे बड़ी लोक कला मंच चंदैनी गोंदा के प्रमुख संगीतकार रहे है। और उन्होंने चंदैनी गोंदा के लिए करीब 150 से ज्यादा रचनाएं रची और उन्हें अपने सुमधुर आवाज से सजाया।
समय बीतता गया और छत्तीसगढ़ महतारी के यह दुलरवा बेटा आगे बढ़ता गया उन्होंने आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न टीवी चैनल व वृत्त चित्र से लेकर नए ज़माने के यूट्यूब, ब्रॉडकास्ट पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। बगैर अपने कला के मूल तत्व में परिवर्तन किए वे जीवन पर्यन्त आगे बढ़ते उनकी यही आचरण जम्मों छत्तीसगढ़िया समेत देश के अन्य राज्यों के लोगों को भी भाया यही कारण रहा कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर में छत्तीसगढ़ी लोक कला और संस्कृति का परिचायक बना दिया और एक समय ऐसा भी दौर आया जब लक्ष्मण मस्तुरिया को छत्तीसगढ़ी लोक कला और संस्कृति का सबसे बड़ा उद्घोषक माने जाने लगा।
मस्तुरिया जी ने चंदैनी गोंदा से लेकर, भोरमदेव महोत्सव, छत्तीसगढ़ी लोक कला महोत्सव, चक्रधर समारोह, बस्तर महोत्सव, लोक मड़ई, रावत नाचा महोत्सव, माघ मेला, बस्तर दशहरा जैसे विशाल मंचों में अपनी ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली और अपनी छइंया भुइंया के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम को अपने रचनाओं में ऐसा पिरोया की समस्त छत्तीसगढ़ मस्तुरियामय हो गया।
कदाचित छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ महतारी के प्रति उनका अगाध निश्छल प्रेम ही था जिसके कारण बिलासपुर जिले के मस्तूरी गांव का एक बेटा छत्तीसगढ़ महतारी का रतन बेटा बन गया और इतिहास के पन्नों में लक्ष्मण मस्तुरिया नाम से दर्ज हो गया।