विशेष लेख – रिटायरमेंट वह एहसास कि अच्छे खासे आदमी को सोचने पर मजबूर कर दे
रिटायरमेंट एक ऐसा शब्द है जो अच्छे खासा वयक्ति को भी जबरदस्ती मानसिक रूप से एक बार सोचने को तो मजबूर कर ही देता है । वहीं हमारी उक्तियाँ भी इसमे सोने मे सुहागा कर देती है विशेषकर यह ” सठिया ” गये है । चलो बात शुरू की जाए आज के समय लोगों मे स्वास्थय सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढी है । मेरे को तो देश व समाज के दोहरेपन भी अफसोस होता है। यही लोग है जो साठ के पास आए अभिनेताओ को शायद मेरे को नाम लिखने की आवश्यकता नहीं है हीरो मानतीं हैं वही स्वस्थ वयक्ति को जो शासकीय नियमों के तहत जबरदस्ती सेवानिवृत्ति दी जाती हैं। उस कर्मचारी अधिकारी के साथ अन्याय है। एक जमाने में आपातकाल के समय साठ दशक वाले स्व. चंद्रशेखर स्व. कृष्णकांत स्व . रामधन व स्व. मोहन धारिया युवा तुर्क के रूप मे प्रसिद्ध हुए थे । फिर से अपने विषय पर कहीं कहीं तो यह आयु अठावन साल है । साठ साल की आयु मे हर शख्स अपने परिवार की समस्याओं से ज्यादा जूझते रहता है । यह समय उसके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहते हैं। अगर बंदा इमानदार रहा तो उसके लिए तो आफतो का पहाड ही खडा दिखता हैं। मध्यम परिस्थिति के लोग कोई भी काल रहा हो वो ज्यादा प्रभावित होते हैं। पर कुछ लोग समय के साथ चलने वाले रहते है जिसे दूरदर्शी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं ये लोग अपने आगे का भी इंतजाम कर लेते है। शायद ऐसे लोगों की ही संख्या ज्यादा रहती है। जिन्हे सेवानिवृत्ति से कोई खास फर्क नहीं पडता। चले पुनः विषय पर आया जाये एक चलते फिरते आदमी को जब कहा भी जाए या कहा भी नहीं जाता कि कल से वो अपने काम के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से अनफिट है । इसलिए शासकीय रूप से सेवानिवृत्त का आदेश आ जाता है। कुछ दिन सेवा निवृत्ति के बाद तो सामने वाले को तो रविवार या अवकाश सा अहसास होता है। पर रोज का यह दिन आगे चलकर एक उदासी सा महसूस होने लगता है। जैसे मैंने देखा है कि छोटे सर्विस वाले अपनी आय बढाने के लिए कहीं छोटे मोटे प्रायवहेट जाब करना शुरू कर देते है । इससे समय भी कट जाता है और आर्थिक लाभ दोनों होता है। पर उन उच्चाधिकारी के लिए तो यह सब जहां अनपेक्षित रहता है वहीं उस शासकीय सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है जहां बंगला कार ड्राइवर नौकर चाकर जैसे अनगिनत सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है। फिर रिटायरमेंट के बाद सार्वजनिक जीवन में जो समझौते करने पडते है वो काफी असहनीय होते है । जहां तनख्वाह पेंशन मे बदल जाती है। जिससे आर्थिक चोट पहुंचती हैं। वहीं सुविधा के लिए खर्च करना काफी जान पर आता है । वहीं एक बडे मुकाम पर पहुचने के बाद की रहने की लाइफस्टाइल भी बदलाव करने की हिम्मत चाह कर भी नहीं कर पाते । इन हालात में वो लोग थोड़ी राहत पा लेते है जिनका अपना स्वंय का घर है । जिनका नहीं रहता वो भविष्य में घर बनाने की हिम्मत बडे मुश्किल से करते है। वो यह सोचते हैं कि अगर पूरी राशि इस पर ही खर्च हो जाएगी तो आगे के खर्च क्या होगा ? वहीं कई परिवार बच्चो को शिक्षा देने के लिए जद्दोजहद करता है फिर नौकरी के लिए अपनी पूरी उर्जा लगा देता है। फिर वहीं का सबसे बड़ा खर्च बच्चो की शादी का जिस पर कोई सीमाएं नहीं होती। पर भारी मन से हामी भरते हुए खर्च की रज़ामंदी देनी ही पडती है। पर कुछ लोग मौला किस्म के इंसान होते है जिनका विजन बड़ा साफ होता है। यह लोग अपनी योग्यता या अपने शौक के हिसाब से समाज मे अपना काम निकाल ही लेते हैं। और खूब इस पर इंजाय करते हैं। मैंने सोशल काम पर लोगों को कहीं चिकित्सक अपनी सेवाएं देते हैं तो कहीं इंजीनियर भी निर्माण कार्य करते है। तो बाबू लोग एकाउंट का काम करते हैं। फिर विषय पर पर एक वर्ग और ऐसा रहता है जिसकी सेवानिवृत्ति जैसा शब्द नहीं रहता वो है प्रायवहेट वर्ग। इसमें चिकित्सक से लेकर सभी लोग शामिल हैं। पर इनकी सेवा निवृत्ति समय से ज्यादा परिवार तय करता है। ज्यादातर मामलों में बच्चो के भविष्य के तरफ देखने से इनकी सेवा निवृत्ति के तरफ कदम बढने लगते है। घर मे दादा दादी से विश्वसनीय और पोता पोती की देखभाल करना फिर इनके एक शौक से काम मे शामिल हो जाता है। पर इसके लिए सामने वाले को अपनी पहचान से लेकर भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वहीं अपने अर्जित संपदा को छोड़कर आने का अफसोस वहीं अपने बनाये सर्कल को छोडना भी काफी दुखद होता है। फिर वह संबंध बनाना काफी दुशकर होता है। फिर वो बंदा करीब करीब दो भागों में बंट सा जाता है। जैसे मैंने भी महसूस किया है। फिर व्यापार में दो पीढ़ियों के विचार और अंतर के कारण व्यापारी को भी एक तरह से घर बैठने को अप्रत्यक्ष रूप से मजबूर कर दिया जाता है। वहीं ज्यादातर इस उम्र के लोगों को कुछ न कुछ शारीरिक समस्याओं से भी झूझना पड़ता है । फिर आजकल के महंगे इलाज एक नई चिंता खडे तो कर ही देते है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पर उम्र भी हावी नहीं होती इन पर काम का जुनून ऐसा सवार रहता है कि यह लोग दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं स्व. राम जेठमलानी जी जब तक जीवित रहे बयानबे साल की उम्र मे भी कोर्ट जाते रहे। राम जन्म भूमि केस में राम लला के वकील श्री पाराशरन साहब बयानबे के उम्र मे राम लला के केस को लडा। न्यायधीश द्वारा उन्हे बैठकर जिरह करने की बात कही तो इस अनुरोध को उन्होंने मना कर दिया। यह होती है काम की जिद । और उन्होंने राम जन्म भूमि का केस जीता । यह विषय इतना बड़ा है कि अभी भी बहुत बिंदु छूट गये है। कभी और आगे इस पर चर्चा करेंगे । बस इतना ही
डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ